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संरचनात्मक यथार्थवाद यह मानता है कि अंतर्राष्ट्रीय संरचना की प्रकृति को उसके आदेश सिद्धांत, अराजकता ओर क्षमताओं के वितरण (जो अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के भीतर महाशक्तियों की संख्या दवारा मापा गया हो) के द्वारा परिभाषित किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय संरचना की अराजक व्यवस्था विकेंद्रीकृत है। इसका अर्थ है कि इसका कोई औपचारिक केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है ; बल्कि प्रत्येक संप्रभु देश इस प्रणाली में औपचारिक रूप से समान है। ये राज्य स्व-सहायता के तक के अनुसार कार्य करते हैं, जिसका अर्थ है कि देश अपना फ़ायदा चाहते हैं और अतः अपने हितों को अन्य देशों के हितों के अधीन नहीं करेंगे। 


कम से कम इतनी उम्मीद तो हर देश से की जाती है कि वह अपने-आप को जीवित रख सके। यही ज़िंदा रहने की इच्छा उनका बर्ताव निर्धारित करने वाला सबसे बड़ा कारक होती है। इसी के कारण देश दूसरे देशों पर हमला करते हैं, क्योंकि वे एक-दूसरे पर पर्याप्त रूप से भरोसा नहीं कर सकते। यदि वे एक दूसरे पर भरोसा कर सकते, तो आक्रामक स्थिति बनाकर रखने और रक्षा पर इतना ख़र्च करने के बजाय कहीं और धन ख़र्च करके विकास कर सकते थे, लेकिन यहाँ कोई विकल्प मौजूद नहीं है। अतः देश की दूसरे देशों से रक्षा करने पर जान-माल, पैसा और समय ख़र्च करना अनिवार्य है।

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